The Woman
The WomanAcrylic and Mix Media on Paper58 x 90 cm |
मैं पृथ्वी के एक छोर से दुसरे छोर तक दौड़ी
मैं कांच पर चली और काँटों से हुई लहूलुहान
मैंने अपने हिस्से के फूलों को चिताओं में जलाया
पत्तों को पतछड़ के पहले शाखों से गिराया
मैंने छोटे रास्ते छोड़ लंबे रास्तों पर मलंगों से जी लगाया
मैंने खुशियां छोड़ी या वे मुझे छोड़ गई इसके क्या माने
मैंने अंधेरों के काजल से आँखों को सजाया
मैं एक औरत थी या आज़ादी की दास्तान
मैंने एक के बाद एक शिकस्त के बाद मुक्ति का गीत गया ..
----------I, Woman----------
I ran from one end of the Earth to the other, I walked on glass and bled from thorns, I set my share of flowers on fire in canvases, Leaves fell before the branches could hug them, I left the short paths for the long stretches, I abandoned joys, or perhaps, they abandoned me, what does it matter? I adorned my eyes with kohl from the darkness, Was I a woman or a tale of freedom? One after another, I sang the song of liberation after defeat...
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